🌿 कविता : “बुटीगढ़ की गोद में”
( हेमंत मरकाम )
नदियों–सी शांत धरा पर,
वन की गहरी छाँव में,
छुपा हुआ है स्वर्ग सरीखा
बुटीगढ़ उस गाँव में।
जहाँ पत्तों में संगीत बसे,
पग–पग लय बन जाती है,
हर पगडंडी आरती गाकर
जंगल को जगाती है।
धुँध में लिपटे ऊँचे पहाड़,
झरनों की मीठी तान,
मन को भिगो दे ऐसी शीतल
हर साँस में हरियाली गान।
जहाँ बूटी-बूटी देव समान,
औषधि बनकर खिल जाती है,
दुख-दर्दों का भार समेटे
माँ धरती झट मिटाती है।
रघ्घू वैद्य के अद्भुत ज्ञान
वन-संस्कृति जगाती है,
पत्तों की भाषा और जड़ों से
जीवन-रस समझाती है।
शिव की पावन, प्राचीन धरा,
भक्ति का सागर बहता है,
महा शिवरात्रि की बेला में
हर हृदय नत हो रहता है।
नवरात्रि के पावन दीप
जंगल को रोशन करते हैं,
जन-मन की अनगिन कथाएँ
मंदिर द्वार बयाँ करते हैं।
रिलाे की मधुर वाणी
गीतों-सी बहती जाती है,
राऊत नाच और सुवा गान
संस्कृति धूम मचाती है।
कितना प्यारा, कितना पावन
प्रकृति का यह धाम है,
बुटीगढ़ केवल जंगल नहीं,
जीवन का मधुर काव्य-गान है।
जो एक बार यहाँ चला आए,
फिर लौट न पाए मन से,
जैसे कोई माँ की गोद मिली—
हर पीड़ा हर लेतन से।
ओ बुटीगढ़! तू धन्य भूमि,
तेरे चरणों में प्रणाम,
तेरी छाँव में शांति पाकर—
जीवन पाता नव धाम।
//जय बुटीगढ़ बाबा //
आप सभी आदरणीय जानो साधुवात मैने एक कविता के रूप में लिखने का प्रयास हमारे बूटीगढ़ के बारे में किया हु । कही पास लिखने में कोई त्रुटि होगा तो छोटा भाई समझ कर माफ कर देना या कही सुधार करना होगा तो जरूर बता देना। 🙏
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