सेजेस सिंगपुर हमारे विद्यालय का शाला तिहार उत्सव – संस्कृति, रंग और एकता का संगम (19 जून 2025)
भारत अपनी विविधता में एकता के लिए विश्वभर में जाना जाता है। हमारे देश की पहचान ही उसकी समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और लोक जीवन से होती है। इसी भावना को जीवंत करने का एक सुंदर अवसर हमें मिला 19 जून 2025 को, जब हमारे विद्यालय में भव्य तिहार उत्सव का आयोजन हुआ।
यह दिन सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि हमारे विद्यार्थियों और गाँव के लोगों के लिए संस्कृति और एकता का उत्सव बन गया। तिहार की तैयारियाँ कई दिनों पहले से शुरू हो चुकी थीं। बच्चे उत्साह से अपने-अपने राज्यों की वेशभूषा तैयार कर रहे थे, शिक्षक उन्हें सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के लिए प्रशिक्षित कर रहे थे और पूरा विद्यालय एक उत्सवधर्मी माहौल में डूबा हुआ था।
रंग-बिरंगी शुरुआत: प्रार्थना और स्वागत
सुबह विद्यालय प्रांगण में जैसे ही प्रार्थना की मधुर ध्वनि गूंजी, पूरा वातावरण आध्यात्मिकता और उल्लास से भर गया। विद्यालय के प्राचार्य जी ने बच्चों को तिहार की सांस्कृतिक महत्ता के बारे में बताया और सभी को इस आयोजन को सीखने और जुड़ने का अवसर मानने की प्रेरणा दी। स्वागत गीत के साथ कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत हुई और फिर मंच बच्चों के लिए सज चुका था।
भारत की झलक – एक ही मंच पर कई संस्कृतियाँ
कार्यक्रम का सबसे आकर्षक हिस्सा था सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का सिलसिला।
बच्चों ने भारत के विभिन्न राज्यों की लोकनृत्य, गीत और परंपराएँ पेश कीं। राजस्थान के रंग-बिरंगे घाघरे, पंजाब के भांगड़ा की धुन, महाराष्ट्र के लावणी नृत्य, असम के बिहू, बंगाल की सांस्कृतिक झलक और दक्षिण भारत के भरतनाट्यम ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।
हर प्रस्तुति में एक संदेश छिपा था – हम अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं, अलग-अलग कपड़े पहनते हैं, लेकिन हम सब एक हैं।
SCHOOL TIHAR VIDEO DEKHE -
गाँव भ्रमण – उत्सव का जन-जन तक संदेश
इस तिहार उत्सव की सबसे अनोखी कड़ी थी गाँव भ्रमण।
विद्यालय के सभी विद्यार्थी, शिक्षक और स्टाफ पारंपरिक वेशभूषाओं में सजकर एक झांकी की तरह गाँव की गलियों से गुजरे। यह सिर्फ एक सांस्कृतिक यात्रा नहीं थी, बल्कि गाँव के हर व्यक्ति को यह संदेश देने का प्रयास था कि संस्कृति सिर्फ मंच तक सीमित नहीं रहती, वह जन-जन तक पहुँचती है।
गाँव के लोग अपने घरों के बाहर खड़े होकर बच्चों की झांकियों का स्वागत कर रहे थे। बच्चों के रंग-बिरंगे परिधान और उनकी जोशीली प्रस्तुतियों ने ग्रामीणों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी। गाँव के बुजुर्गों ने आशीर्वाद दिया और कई लोगों ने बच्चों के साथ तस्वीरें भी खिंचवाईं।
शिक्षकों और ग्रामीणों की सहभागिता
इस उत्सव की सबसे खास बात यह रही कि सिर्फ विद्यार्थी ही नहीं, बल्कि शिक्षक और गाँववासी भी इसमें सक्रिय रूप से जुड़े।
विद्यालय के शिक्षकों ने बच्चों की तैयारियों में दिन-रात मेहनत की और गाँव के लोगों ने भी सजावट, व्यवस्था और स्वागत में पूरा सहयोग दिया। यह देखना सुखद था कि विद्यालय और गाँव एक परिवार की तरह इस आयोजन में जुड़े।
5 गाँवों के सरपंचों द्वारा नेवता भोज
इस वर्ष के तिहार उत्सव की सबसे खास बात रही नेवता भोज।
कार्यक्रम के उपरांत आस-पास के 5 गाँवों के सरपंचों ने सामूहिक रूप से भोज का आयोजन किया।
इस भोज में करीब 40 गाँवों से आए पालक (अभिभावक) और बच्चे शामिल हुए।
यह दृश्य अपने आप में अद्भुत था — जहाँ एक ओर बच्चों ने संस्कृति का प्रदर्शन किया, वहीं दूसरी ओर भोज ने आपसी भाईचारे और सहयोग की मिसाल पेश की।
गाँव के बुजुर्गों, सरपंचों, पालकों और विद्यालय परिवार के साथ बैठकर सामूहिक भोजन करना सभी के लिए यादगार अनुभव रहा।
सीख और संदेश
तिहार उत्सव सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं था, बल्कि यह बच्चों के लिए सीखने का एक अद्भुत अवसर बन गया।
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उन्होंने जाना कि भारत की संस्कृति कितनी विविधतापूर्ण और सुंदर है।
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उन्हें समझ आया कि वेशभूषा और परंपराएँ सिर्फ पहनावे तक सीमित नहीं, बल्कि एक राज्य की पहचान और इतिहास की झलक होती हैं।
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उन्होंने सामूहिकता और सहयोग की शक्ति को अनुभव किया।
एक यादगार अनुभव
दिनभर के कार्यक्रम के बाद जब बच्चे विद्यालय लौटे, तो उनके चेहरों पर संतोष और खुशी साफ झलक रही थी। यह दिन सिर्फ तिहार का उत्सव नहीं था, बल्कि उनके दिलों में भारतीय संस्कृति के प्रति गर्व और अपनापन भरने वाला दिन बन गया।
निष्कर्ष
19 जून 2025 का तिहार उत्सव हमारे विद्यालय के लिए सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि संस्कृति, एकता और सहयोग की मिसाल बनकर यादगार हो गया।
इस आयोजन ने हमें यह सिखाया कि जब विद्यालय, शिक्षक, विद्यार्थी और समाज एक साथ आते हैं, तो शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि जीवन के हर पहलू को छू लेती है।








