छत्तीसगढ़ी आभूषण और पहनावा

 



छत्तीसगढ़ की पारंपरिक महिला आभूषण और पहनावा

छत्तीसगढ़ भारत के उन राज्यों में से एक है जहाँ आज भी परंपराएँ और संस्कृति जीवंत रूप से दिखाई देती हैं। यहाँ की महिलाएँ अपनी सरलता, मेहनतकश जीवन और पारंपरिक गहनों से अपनी अलग पहचान बनाए रखती हैं। गहने केवल सुंदरता का साधन नहीं होते बल्कि समाज, संस्कृति और परंपरा का प्रतीक भी होते हैं। छत्तीसगढ़ की महिलाओं के आभूषण उनकी संस्कृति की धरोहर हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते आए हैं।

इस ब्लॉग में हम छत्तीसगढ़ी महिला के संपूर्ण श्रृंगार के बारे में विस्तार से जानेंगे और समझेंगे कि यह गहने क्यों इतने महत्वपूर्ण हैं।


👑 सिर और माथे के गहने

छत्तीसगढ़ी महिलाओं के श्रृंगार की शुरुआत सिर और माथे के आभूषणों से होती है। ये गहने न केवल सौंदर्य को निखारते हैं बल्कि सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से भी खास महत्व रखते हैं।

  1. खुट्टी, पटिया, ककई, टिकली – ये गहने मांग के बीच या बालों में सजाए जाते हैं। टिकली अक्सर सोने की होती है और शादीशुदा महिलाओं की पहचान मानी जाती है।

  2. सिंगी – सिर के दोनों ओर पहनने वाला खास आभूषण, जो पारंपरिक वेशभूषा के साथ बेहद आकर्षक लगता है।

  3. झुमका – कानों में पहनने वाला प्रसिद्ध गहना, जो महिलाओं की सुंदरता को चार चांद लगाता है।

  4. खेनवा – माथे पर लगाया जाने वाला छोटा गहना, जो साधारण होते हुए भी बेहद आकर्षक माना जाता है।

  5. नथनी, फुल्लरी, बुळाक, नकसीस, लवंग – नाक के गहनों की विविधता छत्तीसगढ़ी परंपरा की खास पहचान है।

  6. बेनी फूल – बालों में लगाने वाला फूलनुमा गहना, जो विशेष अवसरों पर सजाया जाता है।

  7. मांग मोती – मोतियों की यह सजावट मांग में लगाने से और भी सुंदर लगती है।

👉 इन गहनों से महिलाओं का श्रृंगार संपूर्ण माना जाता है। शादी, तीज-त्योहार और विशेष अवसरों पर इनका इस्तेमाल अवश्य किया जाता है।


💎 गले के आभूषण

गले में पहनने वाले आभूषणों का महत्व छत्तीसगढ़ी महिलाओं के जीवन में सबसे अधिक है। ये गहने न केवल सजावट का साधन हैं बल्कि इनसे भावनाएँ, आस्था और पारिवारिक परंपराएँ भी जुड़ी होती हैं।

  1. हसली – यह छत्तीसगढ़ का सबसे प्रसिद्ध गहना है। मोटा और मजबूत हार, जिसे चांदी से बनाया जाता है। यह न केवल सुंदरता बढ़ाता है बल्कि इसे संपन्नता का प्रतीक भी माना जाता है।

  2. तावीज – आस्था और सुरक्षा का प्रतीक। इसे गले में पहनना शुभ माना जाता है।

  3. पूरी – गोलाकार डिजाइन वाला हारनुमा गहना।

  4. हौलसरी – गले में पहनने वाला छोटा गहना, जो साधारण होते हुए भी आकर्षक होता है।

  5. सुत्ता – काले धागे में मोती या चांदी के टुकड़े पिरोकर बनाया जाता है।

  6. कोड़ी का आभूषण (करण) – यह गहना सीप (कोड़ी) से बनता है। ग्रामीण और जनजातीय समाज में इसका विशेष महत्व है।

👉 गले के गहनों से महिलाओं का श्रृंगार और भी दिव्य और पारंपरिक लगता है।


🖐 हाथों और बाहों के गहने

छत्तीसगढ़ी महिला के श्रृंगार में हाथों और बाहों के गहनों की अपनी एक अलग ही चमक होती है। ये गहने हाथों की सुंदरता को बढ़ाते हैं और साथ ही सामाजिक पहचान भी बनाते हैं।

  1. नामामोरी / बुगुरिया – पारंपरिक आभूषण जो हाथों में पहनने के लिए बनाया जाता है।

  2. पहुंची / बहुटा – चूड़ी की तरह का गहना, जिसे सोने या चांदी से बनाया जाता है।

  3. पर्रा – मोटी चूड़ी, जो खासतौर पर शादीशुदा महिलाओं के हाथों में देखने को मिलती है।

  4. चूरी – सामान्य चूड़ियाँ जो हाथों की सुंदरता में इज़ाफ़ा करती हैं।

  5. ऐंठी – अंगूठे में पहनने वाला गहना।

  6. मुंदरी – अंगुलियों में पहनने वाली अंगूठी।

👉 हाथों और बाहों के ये गहने विशेषकर त्योहारों और विवाह जैसे अवसरों पर महिलाओं के श्रृंगार को संपूर्ण बनाते हैं।


👣 पैरों के गहने

छत्तीसगढ़ की महिलाओं के श्रृंगार में पैरों के गहनों की भी खास जगह है। ये गहने न केवल आकर्षक लगते हैं बल्कि पारंपरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।

  1. पायल – पैरों में पहनने वाली चांदी की चेन, जिसकी मीठी आवाज हर कदम पर सुनाई देती है।

  2. बिछुवा – शादीशुदा महिलाओं के लिए अनिवार्य आभूषण।

  3. टोंड़ा – मोटा चांदी का कड़ा।

  4. लच्छा / साटी – पतली पायलनुमा गहने, जो पैरों की शोभा बढ़ाते हैं।

👉 पैरों के ये गहने ग्रामीण और पारंपरिक जीवन की सादगी और सौंदर्य का प्रतीक हैं।


🌸 छत्तीसगढ़ी गहनों का महत्व

छत्तीसगढ़ी आभूषणों का महत्व केवल सजावट तक सीमित नहीं है, बल्कि ये समाज, संस्कृति और परंपरा की गहराइयों से जुड़े हुए हैं।

  • सौभाग्य का प्रतीक – कुछ गहनों को शादीशुदा महिलाओं के सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, जैसे बिछुवा और नथनी।

  • रक्षा और आस्था – तावीज़ और सुत्ता जैसे गहने धार्मिक आस्था और रक्षा का प्रतीक हैं।

  • सुंदरता और आकर्षण – झुमका, चूड़ी, पायल जैसे गहने महिलाओं की शोभा बढ़ाते हैं।

  • संस्कृति का संरक्षण – ये गहने पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते हैं और संस्कृति को जीवित रखते हैं।


🎉 आज की आधुनिकता में पारंपरिक गहनों का स्थान

भले ही आधुनिक फैशन और डिज़ाइनर ज्वेलरी का चलन बढ़ गया है, लेकिन छत्तीसगढ़ की महिलाएँ आज भी त्योहारों, शादी-ब्याह और खास अवसरों पर पारंपरिक गहनों को धारण करना पसंद करती हैं।

  • शहरी क्षेत्रों में अब इन गहनों के डिज़ाइन को आधुनिकता के साथ जोड़ा जा रहा है।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पारंपरिक गहनों का वही महत्व है, जो सदियों पहले था।

  • यह आभूषण केवल सुंदरता ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक हैं।


✨ निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ की महिलाओं के पारंपरिक गहने केवल आभूषण नहीं हैं, बल्कि यह उनकी संस्कृति, परंपरा और पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं। सिर से लेकर पैरों तक का श्रृंगार छत्तीसगढ़ की महिलाओं को विशेष बनाता है। गहनों का यह संग्रह न केवल सौंदर्य में वृद्धि करता है बल्कि परंपरा की विरासत को भी जीवित रखता है।

आज भी जब छत्तीसगढ़ की महिलाएँ अपने पारंपरिक गहनों से सुसज्जित होती हैं, तो उनकी पहचान पूरे समाज में अलग और सम्मानजनक दिखाई देती है।



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